कविता संग्रह >> दुनिया जैसी मैंने देखी दुनिया जैसी मैंने देखीजगदीश प्रसाद अग्रवाल
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डॉ. जगदीश अग्रवाल का यह कविता संग्रह एक प्रवासी भारतीय की भावनाओं को समर्पित है
डॉ. जगदीश अग्रवाल प्रवासी भारतीय संघ से जुड़े हैं। विदेशों में रह रहे भारतीय के भीतर भी यहाँ के तीज-त्यौहार, यहाँ के संस्कार, यहाँ के रीति-रिवाज, यहाँ का मौसम, पेड़-पौधे, पक्षी जीवित रहते हैं। विदेशों में हसने के बाद भी रिश्तों की नफासत, रिश्तों के प्रति प्रतिबद्धताएँ बदल नहीं पातीं। कह सकते हैं कि प्रवासी भारतीय विदेशी सरजमीं पर भारतीयता को जीवित रखने की कला को विकसित करते हैं। कभी यह भारतीयता कविता के रूप में सामने आती है तो कभी कहानी और उपन्यासों के रूप में। डॉ. जगदीश अग्रवाल का यह कविता संग्रह एक प्रवासी भारतीय की ऐसी ही भावनाओं को समर्पित है। इसका प्रकाशन एक तरह से प्रवासी भारतियों को जोड़ने का भी प्रयास है-ऐसे भारतियों को, जो किसी न किसी रूप में साहित्यिक गतिविधियों से जुड़े हैं।
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